Wednesday, 10 February 2021

कोर्णाक

 कोर्णाक जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है| यह नाटक हमें ईसा की सातवीं शताब्दी से लेकर 13 शताब्दी तक उड़ीसा में एक के बाद एक विशाल भव्य मंदिरों के निर्माण इतिहासिक कहानी को बताता है इन सभी मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ सूर्य देवता का मंदिर कोर्णाक निश्चित है| कहानी में विभिन्न पात्रों के माध्यम से यह बताया गया है कि किस प्रकार करना एक ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण हुआ वह इसी के साथ किस प्रकार से राजनीतिक पृष्ठभूमि पर भी फिर विभिन्न प्रकार की घटनाएं घटती है| निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से कोणार्क नाटक की समीक्षा की गई है:

कथावस्तु :

नाटक की कथा कोर्णाक मंदिर के निर्माण के एवं चालुक्य द्वारा नरसिंह देव के शासन को हड़पने की साजिश के इर्द-गिर्द घूमती है| नाटक की शुरुआत विशु राजीव मुकुंद मध्य संवादों के द्वारा होती है आपस में बात करते हैं कि किस प्रकार ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार कोर्णाक मंदिर गिर जाएगा यहीं से पाठक वर्ग के मन में कहानी के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि क्या मंदिर का निर्माण पूरा होगा या नहीं| नाटक का विकास विभिन्न प्रकार की घटनाओं के माध्यम से होता है उदाहरण के लिए धर्म पंथ का कहानी में आगमन एवं विश्व द्वारा चंद्रलेखा का उल्लेख ही कहानी में विकास की स्थिति को पैदा करता है| कोर्णाक नाटक में कोतुहल की कमी हमें कहीं भी दिखाई नहीं देती यहां हर एक अंग में कोतुहल को बेहद ही अच्छी तरीके से बढ़ावा दिया गया है मंदिर के निर्माण के प्रति जो भी मन में आशंकाएं होते हैं वह धर्म पथ के आगमन से सारी की सारी पूरी तरह से खत्म हो जाती है| चरमोत्कर्ष हमें नाटक में तीसरे अंक में देखने को मिलता है जहां विश्व को यह पता चलता है कि धर्म पद उसी का बेटा है एवं उसे बचाने के लिए चालुक्य के आगे उसके प्राणों के लिए के लिए भीख मांगने के लिए भी तैयार हो जाता है एवं धर्म पद का आत्म सम्मान जब उसके पिता को ऐसा करने से रोकता है तो यहां से चरमोत्कर्ष कहानी में पैदा होता है कि आखिर विश्व आगे क्या करेगा एवं अपने पुत्र की रक्षा एवं राज्य सुरक्षा के लिए उसका अगला कदम क्या होगा| नाटक का अंत सुखद ना होकर दुखद रूप में हमारे समक्ष आया है| अंत में महा शिल्पी विश्व की मृत्यु हो जाती है एवं उसी के साथ भव्य कोर्णाक मंदिर का भी नाश हो जाता है जिस कारण कहानी का अंत एक दुखद रूप में पाठकों के समक्ष आता है|

 पात्र एवं चरित्र चित्रण :

कोर्णाक नाटक के पात्र चार प्रकार से वर्गीकृत किए जा सकते हैं पहला सकारात्मक पात्र दूसरा नकारात्मक पात्र तीसरा मुख्य पात्र चौथा कौन पात्र| कहानी मेम विशु धर्म पथ राजा रा tbजा चालुक्य नरसिंह देव हमें मुख्य पात्रों के रूप में देखने को मिलते हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा कहानी को गतिशीलता मिलती है एवं इनके इनकी भूमिका नाटक के प्रत्येक अंग में विशिष्ट रूप से हमारे समक्ष उभर कर आती है उदाहरण के लिए धर्म पथ पात्र की भूमिका एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में हमारे समक्ष आती हैं जो युवा है निडर है कला का धनी है एवं आत्मसम्मान वाला है| कहानी की विभिन्न घटनाओं का निर्माण पात्रों के द्वारा होता है चाहे वह कहानी कि अगर दूसरे अंक की बात करें तो जब राजा नरसिंह देव को धर्म पथ युद्ध के मैदान में उन को समर्थन देने के साथ-साथ उनमें प्रोत्साहन भर देता है कि वह उनकी रक्षा अंतिम पल तक करेंगे एवं राजा राजा चालुक्य को उनकी साजिशों कामयाब नहीं होने देंगे| इसी के साथ यदि बात करें तो सकारात्मक पात्र के रूप में हमारे समक्ष विश्व धर्म पथ मुकुंद आधी आते हैं एवं साथ ही नकारात्मक पात्र के रूप में हमारे समक्ष राजा राजा चालुक्य उनके सेना अधिकारी शिवालिक आदि आते हैं| कहानी के सभी पात्रों में कहानी में जान भर्ती हैं उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए संवादों से ना केवल कहानी में गतिशीलता आती है अपितु उनके चित्र उद्घाटन में भी मदद करते हैं|

संवाद योजना :

नाटक में जब भी पात्रों के मध्य संवाद होता है तो वह सरल एवं सहज रूप से है| कहीं भी संवाद इतने लंबे नहीं दिखाए गए हैं कि मैं कहानी में स्थिरता ला दे प्रत्येक संवाद नहीं कहानी में गतिशीलता प्रदान करने में मदद की है| पात्रों के संवाद स्थिति के अनुरोध है जिस प्रकार की स्थिति नाटक में दर्शाई गई है पात्र के संवाद उसी स्थिति के अनुकूल हैं उदाहरण के रूप में जब धर्म पद विश्व को मंदिर के गुंबद निर्माण को लेकर सुझाव देता है तो वहां किसी भी अन्य जीव या अन्य स्थिति के बारे में बात नहीं की गई है सारे संवाद उसे योजना के अनुकूल है कि किस प्रकार मंदिर का निर्माण होगा इसीलिए हम कह सकते हैं कि कहानी के संवाद स्थिति अनुकूल हैं| नाटक के संवाद प्रश्न संरचना में भी मदद करते हैं जब भी पाठक संवादों को पड़ता है तो उसके मन में यह बात अवश्य आती है की कहानी में आगे क्या होगा उदाहरण के लिए जब चालुक्य द्वारा कोर्णाक मंदिर को हर तरफ से घेर लिया जाता है एवं नरसिंह देव को पकड़ने की साजिश रची जाती है तब पाठकों के मन में यह सवाल अवश्य आता है कि किस प्रकार से राजा बचेंगे एवं उनका शासन सुरक्षित होगा| कहानी का संवाद व्यवहारिक रूप से हमारे समक्ष आता है उनके द्वारा प्रयोग की गई भाषा शैली बेहद ही व्यवहारिक है कहानी का प्रत्यक्ष संवाद विधि सहज है जिस वजह से पाठक उन्हें आसानी से समझ सकते हैं एवं खुद को कहानी के साथ जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं| यदि संवाद व्यापारिक रूप से ना लिखे जाएं तो वह कहानी में स्वाभाविक था को भी खत्म कर देते हैं इसलिए नाटककार को संवाद निर्माण के समय या अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि संवाद सरल सहज संक्षिप्त एवं स्वाभाविक हो|

देश काल और वातावरण :

कोणार्क नाटक देश काल और वातावरण की दृष्टि से बिल्कुल सफल बंद पड़ा है| नाटक में हर एक उस बिंदु का ध्यान रखा गया है जो देश का और एवं वातावरण को प्रभावित करता है| पात्रों की वेशभूषा साज-सज्जा परिवेश का निर्माण समय को ध्यान में रखकर किया गया है| उदाहरण के लिए नाटक में मुद्रा का प्रयोग राजाओं का आने जाने के लिए रथ का प्रयोग करना एवं भव्य मंदिरों के निर्माण की कला एवं उनका चलन उसी समय की बात को दिखाता है जिस समय  को ध्यान में रखकर यह नाटक लिखा गया है| संपूर्ण नाटक में ऐसा कहीं भी नहीं नजर आता कि हमें कोई भी वस्तु या परिवेश के कोई भी ऐसी चीज नजर आई जो सिटी के अनुकूल ना हो एवं उसमें स्वाभाविक था ना लगे| नाटककार द्वारा विभिन्न तत्वों को ध्यान में रखकर ही नाटक लिखा गया है यही कारण है कि कोर्णाक नाटक  पढ़ने में एकदम रोचक एवं स्वाभाविक नजर आता है|

अभिनय :

नाटकों को मुख्यता अभिनय की दृष्टि से ही लिखा जाता है| यदि नाटकों को अभिनय की दृष्टि से ना लिखा जाए तो कहानी एवं नाटक में कोई फर्क नहीं रह जाएगा| यदि हम कोर्णाक नाटक की बात करें तो यह नाटक अभिनेता की दृष्टि से बिल्कुल सफल बन पड़ा है| नाटक में हर एक दृश्य योजना बिल्कुल ही साधारण रूप से रखी गई है ताकि उसको रंगमंच पर आसानी से   प्रस्तुत किया जा सके| नाटक में नॉर्मल साथ सजा रखी गई है जिस कारण से यदि हम इस नाटक को रंगमंच पर प्रस्तुत करना चाहे तो आर्थिक दृष्टि से यह हमारे लिए कठिन नहीं होगा क्योंकि पात्रों के वस्त्र भूषा से लेकर सेट पर प्रयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु आर्थिक रूप से आम जनजीवन के अनुकूल हैं जिस कारण नाटक में स्वाभाविक था बनी रहती है| नाटककार ने नाटक में सीमित पात्रों का प्रयोग किया है| यदि नाटक में पात्र की संख्या अधिक होगी तो उन्हें रंगमंच पर प्रस्तुत करना भी कठिन होगा यदि हम कोर्णाक नाटक में देखे तो यहां मुख्यता 7 पात्र हमारे समक्ष आते हैं| नाटक में प्राकृतिक दृश्य का कम उपयोग किया गया है नाटक में उन्हीं दृश्यों को दिखाया गया है जो रंगमंच के नियमों एवं  दर्शनी दृश्य के योग्य हो| संपूर्ण नाटक को सरल एवं सहज रखा गया है जिस कारण नाटक पाठक के भी योग्य है एवं साथ ही इसे अभिनय के लिए भी आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है | नाटक में    क्लिष्ट दृश्य का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है यदि कोर्णाक नाटक में भी ऐसे दृश्यों का उपयोग होता जो दर्शनीय योग्य ना हो एवं साथ ही प्रदर्शन में भी मुश्किल खड़ी करें तो यह नाटक भी अभिनेता की दृष्टि से सफल नहीं होता| अतः हम कह सकते हैं कि कोर्णाक नाटक अधिनियम के योग्य है एवं इसमें रंगमंच एवं दर्शनीय दृश्य आदि का संपूर्ण ध्यान रखा गया है|

भाषा शैली :

कोणार्क नाटक में इस्तेमाल की गई भाषा बेहद ही सरल एवं सहज है कुणाल नाटक खड़ी हिंदी में लिखा गया है नाटक की भाषा बेहद ही स्वाभाविक है एवं उसे पूर्ण रूप से पात्रों के अनुकूल ही रचा गया है| कोणार्क नाटक का परिवेश ओडिशा से संबंधित है एवं वहां की वह भाषा एवं बोली का प्रभाव भी हमें नाटक में देखने को मिलता है नाटक में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो उड़िया भाषा से प्रभावित है| नाटक में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है यहां पर प्रत्येक घटना को जन्म देने के लिए एवं कहानी में गतिशीलता बनाए रखने के लिए संवाद आत्मक शैली का ही इस्तेमाल किया गया है| भाषा के सहज एवं सरल होने के कारण पाठक वर्ग खुद को पात्रों के साथ जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं| नाटक को सफल बनाने में भाषा का भी बेहद महत्वपूर्ण योगदान है| नाटककार जगदीश चंद्र माथुर ने कौन नाथ नाटक की रचना के समय भी इस बात का बेहद ही अच्छे रुप से ध्यान रखा है कि किस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया जाए एवं कौन सा पात्र किस प्रकार की भाषा बोलेगा जिससे कि उसका चरित्र उद्घाटन हो सके| उदाहरण के लिए राजा राजा चालुक्य द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा एवं शब्द उनके निर्दई हृदय को स्पष्ट स्पष्ट रूप से दर्शकों के समक्ष रखते हैं कि किस प्रकार में अपनी मंशा एवं शासन के भोग में हजारों शक्तियों के हाथ काटने तक को तैयार हैं| अंत में हम कह सकते हैं कि कोणार्क नाटक भाषा की दृष्टि से 100% सफल बन पड़ा है|

उद्देश्य :

कोणार्क नाटक का मुख्य उद्देश्य यही है कि किस प्रकार हमें सदैव सच्चाई का साथ देना चाहिए एवं निडरता से अपनी बात को दूसरों के समक्ष प्रभावी रूप से रखना चाहिए | नाटककार दशकों तक अपना संदेश पहुंचाने में पूर्ण रूप से सफल रहा है नाटक को पढ़ने के बाद पाठकों के मन में यह बात अवश्य आती है कि किस प्रकार से हमें कर्तव्यनिष्ठ रहना चाहिए एवं कभी भी मुसीबतों से भागना नहीं चाहिए| जब धर्म पथ के सामने चालुक्य द्वारा आक्रमण का खतरा आता है तब वह कायरों की तरह वहां से भागता नहीं है बल्कि नरसिंह देव को भी यह आश्वासन दिलाता है कि वह उनके राज्य को एवं उनके शासन को कोई भी हानि नहीं होने देगा एवं उनकी रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की भी बलि दे देगा| नाटक के इस अंक के द्वारा पाठक वर्ग यह सीखते हैं कि किस प्रकार उन्हें अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठ रहना चाहिए एवं सदैव ही दूसरों की रक्षा के बारे में सोचना चाहिए| अतः हम कह सकते हैं कि नाटककार का नाटक को लिखने के प्रति जो उद्देश्य था वह दर्शकों तक सफलता से पहुंचा है| नाटक को पढ़ने के बाद पाठक यह समझते हैं कि किस प्रकार उन्हें समाज प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाना है एवं एक योग्य नागरिक के रूप में सबके समक्ष उभरकर प्रस्तुत होना है|

अंत में हम यह बात कह सकते हैं कि करना नाटक समीक्षा के बिंदुओं पर पूर्ण रूप से सफल खड़ा हुआ है नाटक का प्रत्येक अंग हमें प्रेरणा देता है एवं समाज में निहित बुराइयों को सुधारने का मौका देता है| नाटक की कथावस्तु पात्र योजना संवाद योजना देश काल एवं वातावरण भाषा शैली अभिनेता उद्देश्य सभी फर्स्ट सहज एवं सरल रूप से हमारे समक्ष आते हैं| अंत में मैं इच्छा करती हूं कि इस तरह के नाटक भविष्य में भी लिखित जाए जो पाठकों का ना केवल मनोरंजन करें अभी तू उन्हें जीवन में कुछ करने एक मार्गदर्शन देने एवं उनका मनोबल बढ़ाने मैं सहायक सिद्ध हो|


Monday, 18 January 2021

लगान

 लगान सन 2001 में आई हिंदी फिल्म है लगान फिल्म में रानी विक्टोरिया के ब्रिटिश राज की एक सूखा पीड़ित गांवों के किसानों पर कठोर ब्रिटिश लगान की कहानी है निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से लगान फिल्म की समीक्षा प्रस्तुत की गई है| 


कथावस्तु :
फिल्म की कहानी का प्रणाम गांव के उस दृश्य से होता है कि किस प्रकार गांव सूखा पीड़ित है वह गांव का प्रत्येक व्यक्ति आकाश की ओर नजर लगाए बादलों के इंतजार में बैठा है| 

विकास की स्थिति में ऐसी कई घटनाओं को दर्शाया गया है जो फिल्म में गतिशीलता लेकर आती है मोबाइल का हिरण को जंगल से शिकार से बचाना अंग्रेजों का राजा को मांसाहारी खाना प्रस्तुत करना व प्रांत में दुगना लगान की बात करना कहानी में विकास लाता है| इसके अलावा भुवन द्वारा क्रिकेट की शर्ट को मंजूर करना बग्गा वालों का उसका साथ ना देना फिल्म की कहानी में विकास की स्थिति पैदा करता है| 
कौतूहल कहानी में प्रत्येक क्षण देखने को मिलता है| क्रिकेट के मैच के दौरान दर्शकों का कौतूहल चरम सीमा पर होता है हम यह जाने के लिए प्रत्येक पल उत्सुक रहते हैं कि भारत की जीत आखिर में संभव होगी या नहीं यदि हां तो वह कैसे संभव हो| जब भारत क्रिकेट के मैच में हार की और आगे बढ़ रहा था वही भुवन कचरा को गेंदबाजी के लिए बुलाता हैl 

कहानी में यह चरमोत्कर्ष देखने को मिलता है| इसके अलावा अंत में जब बल्लेबाजी करते हुए भारतीय खिलाड़ी घायल हो जाते हैं तब भी हमारी जिज्ञासा चरमोत्कर्ष पर होती है कि भारत मैच कैसे जीतेगा लेकिन अंत में सबके साथ के साथ एवं हिम्मत के साथ भारतीय मैच जीतने में सक्षम होते हैं| 

फिल्म के अंत में जब भारतीय गांव के निवासी जीत जाते हैं उनका हर्ष और उल्लास देखकर दर्शकों के मन भी शांत हो जाते हैं एवं अंत में गांव में बारिश आ जाती है उनकी सारी खुशियों का लौटाना कहानी का एक सुखद अंत की ओर बढ़ना हैl

पात्र:

पात्र लगान फिल्म में हम सकारात्मक एवं नकारात्मक के साथ-साथ मुख्य एवं गुण पात्र देखने को मिलते हैं| भुवन गौरी इस्माइल अर्जुन गोली ईश्वर कचरा देव सिंह टीपू| यह सभी पात्र कहानी में सकारात्मक पात्रों के रूप में हम दर्शकों के समक्ष आते हैं| इन पात्रों के चरित्र में अच्छाई सच्चाई ईमानदारी परिश्रम आधी जैसे गुण देखने को मिलते हैं| इसके अलावा बने कैप्टन रसाल मचकुंड आदि नकारात्मक रूप में देखने को मिलते हैं| लाखा एक ऐसा पात्र है जो कहानी के प्रारंभ में नकारात्मक रूप में हम दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत होता है लेकिन जब कहानी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है तब लाखा गांव वालों का साथ देता है वह अपनी गलती मानते हुए उसे पश्चाताप की और चला जाता है एवं भारत को जीत की आग जीत की और आगे बढ़ाने में मदद करता है एक ऐसा पात्र है जिसके माध्यम से हम समझते हैं कि जीवन में गलती माने एवं उसे सुधारने से हम अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं वही दूसरों की मदद कर उनका विश्वास भी जीत सकते हैं| भुवन कहानी का एक मुख्य पात्र है जो कहानी को ना केवल गतिशीलता प्रदान करता है एवं घटनाओं को आदि जन्म देता है इसके साथ ही वह दर्शकों के समक्ष एक विशिष्ट पात्र के रूप में उभरकर सामने आता ह 

देशकाल एवं वातावरण :

 फिल्म में दिखाया गया देश का   बिल्कुल दिखाए गए समय के अनुकूल है| फिल्मी ब्रिटिश काल के दौरान वाले भारत की स्थिति को दिखाया गया है| उन स्थितियों को लोगों की वेशभूषा को  लोगों की बोलचाल को आधी को पर्दे पर प्रदर्शित करने में  निर्देशक सफल हुए हैं| उदाहरण के लिए जब भी राजा की सवारी कहीं जाती हैं वह हाथी पर जाते हैं ना की कार पर यह बिल्कुल पुराने समय के अनुकूल है| इसके अलावा गांव वालों की वेशभूषा उस समय के अनुकूल है गांव वाले धोती और जो औरतें हैं वह घाघरा चोली पहनती हैं वहीं इसके विपरीत अंग्रेजी लोगों को पेंट शर्ट टोपी इन सब में दिखाया गया है| यदि फिल्म या नाटक बनाते समय  देशकाल एवं वातावरण की स्थितियों को ध्यान में रखकर दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए तो निर्देशक की सफलता का तो दिखाई देता ही है और साथ ही कहानी में स्वाभाविक था नजर आती है जिसे दर्शक अच्छे से कहानीकार  कल्पना के साथ खुद को अच्छे से जोड़ पाते हैं| किसी भी नाटक या फिल्म में देशकाल एवं वातावरण को दर्शाने के समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान आवश्यक रखना चाहिए 

-स्थान निर्धारित करना

-समय का समायोजन करना

-परिवेश निर्माण करना 

-परिवेश निर्माण में वस्तुस्थिति का निर्धारण करना 

यदि हम इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो हम एक अच्छे देश काल एवं वातावरण का निर्माण कर अपनी कहानी या नाटक को दर्शकों के समक्ष संगठित रूप से प्रस्तुत कर सकेंगे|

संवाद योजना :
फिल्म में जितने भी संवाद है वरना के बहुत सरल है बल्कि सहज एवं रोचक संपूर्ण फिल्म में जहां भी पात्र एक दूसरे से बात करते हैं वहां संवाद लंबे नहीं दिखाएगा जिस कारण में गतिशीलता बनी रहती है कहीं भी स्थिरता नहीं दिखाई देती एवं दर्शक भी उन्हें रोचक समझते हुए सहजता से खुद को कहानी के साथ जोड़ पाते हैं एवं बोर नहीं होते| इसी के साथ संवाद स्थिति के अनुकूल है जिस तरह की स्थिति है संवाद उसी तरह के दिखाए गए हैं कहीं भी अस्पष्ट अनिश्चित बात नहीं की गई है| उदाहरण के लिए जब भुवन एवं एलिजाबेथ बात करते हैं तब हम देखते हैं कि किस प्रकार दोनों क्रिकेट के नियम और अंग्रेजी आदि के विषय में बातचीत करते हैं ना कि अन्य किसी चीज के बारे में जो स्थिति के अनुकूल ना हो| इसी के साथ निर्देशक ने यह भी ध्यान रखा है कि इस सीन के दौरान यह दिखाया जाए कि एलिजाबेथ को अंग्रेजी नहीं आती इसीलिए वहां पर एक अनुवाद करने वाला व्यक्ति भी होता है जिससे की कहानी में कंटिन्यूटी बनी रहती है| 

भाषा शैली:
 फिल्में सरल सहज एवं स्वाभाविक भाषा शैली का प्रयोग किया गया है हम जब फिल्म देखते हैं तब खुद को पात्रों से जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं इसका एक कारण यही है कि फिल्म में जिस भाषा शैली का प्रयोग किया गया है वह बेहद स्वाभाविक है गांव वाले जो भाषा बोलते हैं वह उनके परिवेश स्थिति एवं समाज के अनुकूल है उदाहरण के लिए सभी पात्र सहज भाषा का प्रयोग करते हैं ना कि क्लिष्ट भाषा शैली का प्रयोग किया गया है यही कारण है कि फिल्म को जब भी कोई भी वर्क चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित हो सभी उसको सरल रूप से समझ पाते हैं एवं उसकी पूरा आनंद उठा पाते हैं| इसी के साथ हमें इस बिंदु पर भी ध्यान देना होगा कि फिल्म में वर्णनात्मक शैली का बहुत कम प्रयोग किया गया है फिल्म की शुरुआत में ही केवल वर्णन किया गया है कि चंपारण गांव की स्थिति क्या है एवं ब्रिटिश वहां पर किस प्रकार जनता पर अत्याचार कर रहे हैं| इसके अलावा पूरी फिल्म में कहीं पर विवरणात्मक शादी नहीं है हर जगह संवादों की मदद से फिल्म को गतिशीलता प्रदान की गई है|

अभिनेता:
 यह कहानी बिल्कुल अभिनेता के अनुकूल है जैसा आप देख सकते हैं कि किस प्रकार लगान फिल्म में सही अभिनेताओं की मदद से फिल्म को सफल बनाया गया है| हम भी रंगमंच के नियमों एवं उन दृश्यों के बचाव से कहानी को रंगमंच पर प्रस्तुत कर सकते हैं जिनका प्रदर्शन करना असंभव हो जैसे कि प्राकृतिक दृश्य इन्हें हम रंगमंच पर नहीं दिखा सकते है| उदाहरण के लिए यदि हमें रंगमंच पर पानी के बहते हुए झरने को दिखाना है तो यह बिल्कुल भी संभव नहीं है इसलिए हमें इस प्रकार के दृश्यों को रंगमंच पर प्रस्तुत करना नहीं चाहिए एवं उनकी इनसे बचाव करना चाहिए| यदि हम इस फिल्म का उदाहरण लिए तो हम रंगमंच पर ऐसे बहुत से दृश्य हैं जिन्हें प्रस्तुत कर सकते हैं जिसे अंत में आए क्रिकेट के दृश्य को हम रंगमंच पर प्रस्तुत कर सकते हैं लेकिन इसी के साथ हम उन प्राकृतिक दृश्य को रंगमंच पर नहीं दिखा सकते जिनका प्रस्तुतीकरण संभव नहीं है उदाहरण के लिए बारिश का आना ,बिजली चमकना, घुड़सवार ओं का घोड़ों पर आकर गांव वालों को दुगने लगान की बात बताना| 

उद्देश्य:
 लगान फिल्म अपनी मूल कथा द्वारा जो उद्देश्य दशकों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहती थी वह उसमें संपूर्ण रूप से सफल हुई है फिल्म के द्वारा यह संदेश देने की कोशिश की गई है यदि हम सब मिलकर किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर ले तो उसे पाना संभव है| बस जरूरत है आत्मविश्वास साथ एवं एक दूसरे पर विश्वास की| गांव वालों का एक दूसरे पर विश्वास ही अंग्रेजों को हराने में मदद करता है कहानी का दर्शकों तक लिए संदेश पहुंचाने में बिल्कुल सफल हुए हैं| 

अंत में हम कह सकते हैं कि भारतीय सिनेमा जगत में इस प्रकार की फिल्में होना एक गर्व की बात है| आज किस समय में हमें जरूरत है कुछ इसी प्रकार की फिल्मों की जो समाज को जोश समाज भाईचारा सकारात्मकता की ओर ले चली| समाज में बढ़ रहे अपराध को कम करने के लिए फिल्म अभिनेताओं की एक बड़ी भूमिका रहती है क्योंकि आज के समय में हमारी युवा पीढ़ी कलर दिशा की ओर चल रही है वह इन्हीं सब को अपना प्रेरक समझती है यदि उनके द्वारा किसी प्रकार के संदेश दिए जाएंगे उनकी फिल्मों के माध्यम से तो हमारी युवा पीढ़ी अवश्य ही एक अच्छी राह पर चलेगी और देश की प्रगति में अपना योगदान संपूर्ण रूप से देगी|

Sunday, 17 February 2019

Taare zameen par

Taare zameen par is the produce by Aamir khan and talks about the the education system of India and tell us that how with the development of nations over education system is degrading its value .some how both education system and as well as parents are involved in this but we have to improve this situation and their is emergence need to solve this situation . as with the enhancement of knowledge we are lacking with our values no one is their to tell us or to improve the current situation of the society . in such conditions movies play an vital role for the improvement of the society . Taare zameen par can be considered as one of those movies in which everyone each and every situation talks about the current situation of the society . as we know that today society is based upon o the manner of show of noon not even the parents left their children they pressured their child to adopt particular subjects although he was not interested that why so of the students start doing some unwanted activities including suicide ,drugs etc.

Firstly students should need to improve their mindset ad have to understate that how they all are needed to raise their voice so that their parents can understand their point of view .some of the students came to the back-foot because they all assume that their parents will never understand their problem .

Secondly parents need to understand that education is the whole matter of interest with need full attention of the student so they should never compare their children with other ones and never force the to adopt particular profession because may be he or she was not interested in that .
 
Thirdly teaches ca also make their contribution i this matter as they all can guard the student and talk to their parents  also help the students to learn and achieve something in his/her life . and make them to do wonders i their respective life .

In the end we can conclude that this make us aware about the current situation of the education system and tell us that how this system is effecting our youth and we need to improve this situation and need some more movies like this we show us the true mirror of the society .A smiling, young Indian boy sits at a desk with his head resting on his folded arms in front of him. Behind him and to his right, a young Indian man is doing the same and is looking at the boy. Above them is the film's title "Taare Zameen Par" with the subtitle of "Every Child is Special". Drawings of a bird, plane, octopus, and fish are in the background.

तकनीके और मोब्लिब फ़ोन

आज  कल समय  के   साथ साथ युवा वर्ग  से तकनीके परचलत हो रहे है।  इस का उन पर अच्छा  परभाव तो  है लेकिन ही इसबहुत दुष्प्रबव भी हो रहा है।  हम अक्सर देखते है के आज कल युवा वर्ग हर समय अपने साथ मोब्लिब फ़ोन रखता है इस कारण अब हम सब को इस के आदत हो गए है।  हमे मोब्लिब फ़ोन  लत को जब देखते  है तो यह पते है के किस प्रकार युवओ में इसका प्रभाब इतना ज्यादा हो गया है के हम सब यह सब ढक हे ही पते के हमरे आसपास क्या हो रहा है हम ने आप जीबन बस  मोब्लिब फ़ोन तक समेत कर  लिया है। हम सब नहीं जानना चाते के हमरा समाज किस और जा रहा है।  लेकिन हमे इसके बुरे  प्रभाब पता भी है लेकिन फर भी हम एप आप को इस के चपटे से नहीं बच पाते।  हर समय इस प्रयोग करते है और अपने आप को नुकसान पहुचाहते है। मोब्लिब फ़ोन न केबल हमरा समय , हमरे शारीरिक , और पर्यावरण को नहीं हानि  पहुचाहते है। हम पूर्ण रूप से यह नहीं बोल सकते के मोब्लिब फ़ोन नुकसान वाले है लेकिन है इसके नुकसान दिन परते दिन ज्यादा होते जा रहे है। लोग मोबाइल के उपयोग में इतने मग्न हो जाते हैं की गाड़ी चलते हुए भी मोबाइल फ़ोन में बात चित करते हैं। यह गलती या नुकसान भी ज्यादातर मोबाइल फ़ोन के निरंतर उपयोग के कारण होता है।मोबाइल फ़ोन टावर से कई प्रकार की स्वास्थय हानि हो सकती है।  बच्चे मोबाइल फ़ोन की बुरी आदत लगा लेते है। वह मोबाइल फ़ोन पर लम्बें समय तक फ़ोन पर बात करते हैं, Games खेलते हैं, चित्र और विडियो देखते रहते हैं, इस कारण उनका समय ख़राब होता हैं।

लेकिन इन सब बातो के साथ हमे मोब्लिब फ़ोन और तकनीके  के अच्छा परभाव  को भी याद रखना चाहिए जैसे :

आसान संचार 


व्यापार में बढ़ावा 


लोगों की शुरक्षा और क़ानूनी बातों में मदद 


आपातकाल में मदद

अंत में हम बोल सकते है की मोब्लिब फ़ोन और तकनीके का इस्तेमाल मानव के हाथ में हैं हमे इसका उपजोग हमे सदैव समझदार चाहिए।

Monday, 28 January 2019

देश के विकास में युवा पीढ़ी और समाज का योगदान

आज  का समाज जैसे जैसे विकास कर रहा है वैसे वैसे इस समाज में कुछ ऐसे गतिविधयां भी हो रही है जो समाज को विकास के रहा पर चले से रोक रहे है. इस समाज को विकास के रहा पर चलाए जाने के लिए बस प्रसासन ही जेमेदार नहीं है बल्कि जनता का योगदान  भी महत्तपूर्ण है. समाज में चल रही  के प्रकार के गतिविधयां है जो हम सब देख  कर भी ही देख पाते।  हम सदैव समाज को दोष देते है लेकिन यह कभी नहीं समझते के यह समाज हम से ही है और हमें  इसे खूबसूरत  बनाना है

समाज  के प्रति हमारी कुछ  जेमेदारे है हमे उसे समझना चाहए और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए देश को प्रगति की रहा पर चलने में अपना योगदान  देना चाहए हम  सदैव मौलिक आधिकारो को याद रखते है लेकिन अपने मूल कर्तव्य भूल जाते  है  . 

देश के विकास में सबसे बड़ा जोगदान युवा पीढ़ी का है युवा अपने ,श्रम से देश को आसमान के ऊचाई  तक लेकर जा सकते है। मेरा भारत महान इस स्लोगन को और भी सार्थक करने के प्रयास युवा पीढ़ी सतत करती रहती है युवाओ के हाथ में ही देश के बदलाव का जिम्मा होता है यदि वह चाहे तो देश को बदल सकते है हर एक्टिविटी में वह अपना योगदान देते है और देश को उन्नति की ओर अग्रसर करते है. भारत देश में युवा राष्ट की शक्ति है युवाओ को अपने देश में ही रहकर राष्ट निर्माण में अपना योगदान देना चहिये ओर देश को विश्व शक्ति बनाना होगा  . 

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Tuesday, 15 January 2019

महादेवी वर्मा के ये शब्द याद हैं

चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत्-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले?
पन्थ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले?
विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर-गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
वज्र का उर एक छोटे अश्रुकण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक् पतंग की है अमर की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!