Wednesday, 10 February 2021

कोर्णाक

 कोर्णाक जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है| यह नाटक हमें ईसा की सातवीं शताब्दी से लेकर 13 शताब्दी तक उड़ीसा में एक के बाद एक विशाल भव्य मंदिरों के निर्माण इतिहासिक कहानी को बताता है इन सभी मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ सूर्य देवता का मंदिर कोर्णाक निश्चित है| कहानी में विभिन्न पात्रों के माध्यम से यह बताया गया है कि किस प्रकार करना एक ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण हुआ वह इसी के साथ किस प्रकार से राजनीतिक पृष्ठभूमि पर भी फिर विभिन्न प्रकार की घटनाएं घटती है| निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से कोणार्क नाटक की समीक्षा की गई है:

कथावस्तु :

नाटक की कथा कोर्णाक मंदिर के निर्माण के एवं चालुक्य द्वारा नरसिंह देव के शासन को हड़पने की साजिश के इर्द-गिर्द घूमती है| नाटक की शुरुआत विशु राजीव मुकुंद मध्य संवादों के द्वारा होती है आपस में बात करते हैं कि किस प्रकार ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार कोर्णाक मंदिर गिर जाएगा यहीं से पाठक वर्ग के मन में कहानी के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि क्या मंदिर का निर्माण पूरा होगा या नहीं| नाटक का विकास विभिन्न प्रकार की घटनाओं के माध्यम से होता है उदाहरण के लिए धर्म पंथ का कहानी में आगमन एवं विश्व द्वारा चंद्रलेखा का उल्लेख ही कहानी में विकास की स्थिति को पैदा करता है| कोर्णाक नाटक में कोतुहल की कमी हमें कहीं भी दिखाई नहीं देती यहां हर एक अंग में कोतुहल को बेहद ही अच्छी तरीके से बढ़ावा दिया गया है मंदिर के निर्माण के प्रति जो भी मन में आशंकाएं होते हैं वह धर्म पथ के आगमन से सारी की सारी पूरी तरह से खत्म हो जाती है| चरमोत्कर्ष हमें नाटक में तीसरे अंक में देखने को मिलता है जहां विश्व को यह पता चलता है कि धर्म पद उसी का बेटा है एवं उसे बचाने के लिए चालुक्य के आगे उसके प्राणों के लिए के लिए भीख मांगने के लिए भी तैयार हो जाता है एवं धर्म पद का आत्म सम्मान जब उसके पिता को ऐसा करने से रोकता है तो यहां से चरमोत्कर्ष कहानी में पैदा होता है कि आखिर विश्व आगे क्या करेगा एवं अपने पुत्र की रक्षा एवं राज्य सुरक्षा के लिए उसका अगला कदम क्या होगा| नाटक का अंत सुखद ना होकर दुखद रूप में हमारे समक्ष आया है| अंत में महा शिल्पी विश्व की मृत्यु हो जाती है एवं उसी के साथ भव्य कोर्णाक मंदिर का भी नाश हो जाता है जिस कारण कहानी का अंत एक दुखद रूप में पाठकों के समक्ष आता है|

 पात्र एवं चरित्र चित्रण :

कोर्णाक नाटक के पात्र चार प्रकार से वर्गीकृत किए जा सकते हैं पहला सकारात्मक पात्र दूसरा नकारात्मक पात्र तीसरा मुख्य पात्र चौथा कौन पात्र| कहानी मेम विशु धर्म पथ राजा रा tbजा चालुक्य नरसिंह देव हमें मुख्य पात्रों के रूप में देखने को मिलते हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा कहानी को गतिशीलता मिलती है एवं इनके इनकी भूमिका नाटक के प्रत्येक अंग में विशिष्ट रूप से हमारे समक्ष उभर कर आती है उदाहरण के लिए धर्म पथ पात्र की भूमिका एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में हमारे समक्ष आती हैं जो युवा है निडर है कला का धनी है एवं आत्मसम्मान वाला है| कहानी की विभिन्न घटनाओं का निर्माण पात्रों के द्वारा होता है चाहे वह कहानी कि अगर दूसरे अंक की बात करें तो जब राजा नरसिंह देव को धर्म पथ युद्ध के मैदान में उन को समर्थन देने के साथ-साथ उनमें प्रोत्साहन भर देता है कि वह उनकी रक्षा अंतिम पल तक करेंगे एवं राजा राजा चालुक्य को उनकी साजिशों कामयाब नहीं होने देंगे| इसी के साथ यदि बात करें तो सकारात्मक पात्र के रूप में हमारे समक्ष विश्व धर्म पथ मुकुंद आधी आते हैं एवं साथ ही नकारात्मक पात्र के रूप में हमारे समक्ष राजा राजा चालुक्य उनके सेना अधिकारी शिवालिक आदि आते हैं| कहानी के सभी पात्रों में कहानी में जान भर्ती हैं उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए संवादों से ना केवल कहानी में गतिशीलता आती है अपितु उनके चित्र उद्घाटन में भी मदद करते हैं|

संवाद योजना :

नाटक में जब भी पात्रों के मध्य संवाद होता है तो वह सरल एवं सहज रूप से है| कहीं भी संवाद इतने लंबे नहीं दिखाए गए हैं कि मैं कहानी में स्थिरता ला दे प्रत्येक संवाद नहीं कहानी में गतिशीलता प्रदान करने में मदद की है| पात्रों के संवाद स्थिति के अनुरोध है जिस प्रकार की स्थिति नाटक में दर्शाई गई है पात्र के संवाद उसी स्थिति के अनुकूल हैं उदाहरण के रूप में जब धर्म पद विश्व को मंदिर के गुंबद निर्माण को लेकर सुझाव देता है तो वहां किसी भी अन्य जीव या अन्य स्थिति के बारे में बात नहीं की गई है सारे संवाद उसे योजना के अनुकूल है कि किस प्रकार मंदिर का निर्माण होगा इसीलिए हम कह सकते हैं कि कहानी के संवाद स्थिति अनुकूल हैं| नाटक के संवाद प्रश्न संरचना में भी मदद करते हैं जब भी पाठक संवादों को पड़ता है तो उसके मन में यह बात अवश्य आती है की कहानी में आगे क्या होगा उदाहरण के लिए जब चालुक्य द्वारा कोर्णाक मंदिर को हर तरफ से घेर लिया जाता है एवं नरसिंह देव को पकड़ने की साजिश रची जाती है तब पाठकों के मन में यह सवाल अवश्य आता है कि किस प्रकार से राजा बचेंगे एवं उनका शासन सुरक्षित होगा| कहानी का संवाद व्यवहारिक रूप से हमारे समक्ष आता है उनके द्वारा प्रयोग की गई भाषा शैली बेहद ही व्यवहारिक है कहानी का प्रत्यक्ष संवाद विधि सहज है जिस वजह से पाठक उन्हें आसानी से समझ सकते हैं एवं खुद को कहानी के साथ जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं| यदि संवाद व्यापारिक रूप से ना लिखे जाएं तो वह कहानी में स्वाभाविक था को भी खत्म कर देते हैं इसलिए नाटककार को संवाद निर्माण के समय या अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि संवाद सरल सहज संक्षिप्त एवं स्वाभाविक हो|

देश काल और वातावरण :

कोणार्क नाटक देश काल और वातावरण की दृष्टि से बिल्कुल सफल बंद पड़ा है| नाटक में हर एक उस बिंदु का ध्यान रखा गया है जो देश का और एवं वातावरण को प्रभावित करता है| पात्रों की वेशभूषा साज-सज्जा परिवेश का निर्माण समय को ध्यान में रखकर किया गया है| उदाहरण के लिए नाटक में मुद्रा का प्रयोग राजाओं का आने जाने के लिए रथ का प्रयोग करना एवं भव्य मंदिरों के निर्माण की कला एवं उनका चलन उसी समय की बात को दिखाता है जिस समय  को ध्यान में रखकर यह नाटक लिखा गया है| संपूर्ण नाटक में ऐसा कहीं भी नहीं नजर आता कि हमें कोई भी वस्तु या परिवेश के कोई भी ऐसी चीज नजर आई जो सिटी के अनुकूल ना हो एवं उसमें स्वाभाविक था ना लगे| नाटककार द्वारा विभिन्न तत्वों को ध्यान में रखकर ही नाटक लिखा गया है यही कारण है कि कोर्णाक नाटक  पढ़ने में एकदम रोचक एवं स्वाभाविक नजर आता है|

अभिनय :

नाटकों को मुख्यता अभिनय की दृष्टि से ही लिखा जाता है| यदि नाटकों को अभिनय की दृष्टि से ना लिखा जाए तो कहानी एवं नाटक में कोई फर्क नहीं रह जाएगा| यदि हम कोर्णाक नाटक की बात करें तो यह नाटक अभिनेता की दृष्टि से बिल्कुल सफल बन पड़ा है| नाटक में हर एक दृश्य योजना बिल्कुल ही साधारण रूप से रखी गई है ताकि उसको रंगमंच पर आसानी से   प्रस्तुत किया जा सके| नाटक में नॉर्मल साथ सजा रखी गई है जिस कारण से यदि हम इस नाटक को रंगमंच पर प्रस्तुत करना चाहे तो आर्थिक दृष्टि से यह हमारे लिए कठिन नहीं होगा क्योंकि पात्रों के वस्त्र भूषा से लेकर सेट पर प्रयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु आर्थिक रूप से आम जनजीवन के अनुकूल हैं जिस कारण नाटक में स्वाभाविक था बनी रहती है| नाटककार ने नाटक में सीमित पात्रों का प्रयोग किया है| यदि नाटक में पात्र की संख्या अधिक होगी तो उन्हें रंगमंच पर प्रस्तुत करना भी कठिन होगा यदि हम कोर्णाक नाटक में देखे तो यहां मुख्यता 7 पात्र हमारे समक्ष आते हैं| नाटक में प्राकृतिक दृश्य का कम उपयोग किया गया है नाटक में उन्हीं दृश्यों को दिखाया गया है जो रंगमंच के नियमों एवं  दर्शनी दृश्य के योग्य हो| संपूर्ण नाटक को सरल एवं सहज रखा गया है जिस कारण नाटक पाठक के भी योग्य है एवं साथ ही इसे अभिनय के लिए भी आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है | नाटक में    क्लिष्ट दृश्य का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है यदि कोर्णाक नाटक में भी ऐसे दृश्यों का उपयोग होता जो दर्शनीय योग्य ना हो एवं साथ ही प्रदर्शन में भी मुश्किल खड़ी करें तो यह नाटक भी अभिनेता की दृष्टि से सफल नहीं होता| अतः हम कह सकते हैं कि कोर्णाक नाटक अधिनियम के योग्य है एवं इसमें रंगमंच एवं दर्शनीय दृश्य आदि का संपूर्ण ध्यान रखा गया है|

भाषा शैली :

कोणार्क नाटक में इस्तेमाल की गई भाषा बेहद ही सरल एवं सहज है कुणाल नाटक खड़ी हिंदी में लिखा गया है नाटक की भाषा बेहद ही स्वाभाविक है एवं उसे पूर्ण रूप से पात्रों के अनुकूल ही रचा गया है| कोणार्क नाटक का परिवेश ओडिशा से संबंधित है एवं वहां की वह भाषा एवं बोली का प्रभाव भी हमें नाटक में देखने को मिलता है नाटक में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो उड़िया भाषा से प्रभावित है| नाटक में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है यहां पर प्रत्येक घटना को जन्म देने के लिए एवं कहानी में गतिशीलता बनाए रखने के लिए संवाद आत्मक शैली का ही इस्तेमाल किया गया है| भाषा के सहज एवं सरल होने के कारण पाठक वर्ग खुद को पात्रों के साथ जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं| नाटक को सफल बनाने में भाषा का भी बेहद महत्वपूर्ण योगदान है| नाटककार जगदीश चंद्र माथुर ने कौन नाथ नाटक की रचना के समय भी इस बात का बेहद ही अच्छे रुप से ध्यान रखा है कि किस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया जाए एवं कौन सा पात्र किस प्रकार की भाषा बोलेगा जिससे कि उसका चरित्र उद्घाटन हो सके| उदाहरण के लिए राजा राजा चालुक्य द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा एवं शब्द उनके निर्दई हृदय को स्पष्ट स्पष्ट रूप से दर्शकों के समक्ष रखते हैं कि किस प्रकार में अपनी मंशा एवं शासन के भोग में हजारों शक्तियों के हाथ काटने तक को तैयार हैं| अंत में हम कह सकते हैं कि कोणार्क नाटक भाषा की दृष्टि से 100% सफल बन पड़ा है|

उद्देश्य :

कोणार्क नाटक का मुख्य उद्देश्य यही है कि किस प्रकार हमें सदैव सच्चाई का साथ देना चाहिए एवं निडरता से अपनी बात को दूसरों के समक्ष प्रभावी रूप से रखना चाहिए | नाटककार दशकों तक अपना संदेश पहुंचाने में पूर्ण रूप से सफल रहा है नाटक को पढ़ने के बाद पाठकों के मन में यह बात अवश्य आती है कि किस प्रकार से हमें कर्तव्यनिष्ठ रहना चाहिए एवं कभी भी मुसीबतों से भागना नहीं चाहिए| जब धर्म पथ के सामने चालुक्य द्वारा आक्रमण का खतरा आता है तब वह कायरों की तरह वहां से भागता नहीं है बल्कि नरसिंह देव को भी यह आश्वासन दिलाता है कि वह उनके राज्य को एवं उनके शासन को कोई भी हानि नहीं होने देगा एवं उनकी रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की भी बलि दे देगा| नाटक के इस अंक के द्वारा पाठक वर्ग यह सीखते हैं कि किस प्रकार उन्हें अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठ रहना चाहिए एवं सदैव ही दूसरों की रक्षा के बारे में सोचना चाहिए| अतः हम कह सकते हैं कि नाटककार का नाटक को लिखने के प्रति जो उद्देश्य था वह दर्शकों तक सफलता से पहुंचा है| नाटक को पढ़ने के बाद पाठक यह समझते हैं कि किस प्रकार उन्हें समाज प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाना है एवं एक योग्य नागरिक के रूप में सबके समक्ष उभरकर प्रस्तुत होना है|

अंत में हम यह बात कह सकते हैं कि करना नाटक समीक्षा के बिंदुओं पर पूर्ण रूप से सफल खड़ा हुआ है नाटक का प्रत्येक अंग हमें प्रेरणा देता है एवं समाज में निहित बुराइयों को सुधारने का मौका देता है| नाटक की कथावस्तु पात्र योजना संवाद योजना देश काल एवं वातावरण भाषा शैली अभिनेता उद्देश्य सभी फर्स्ट सहज एवं सरल रूप से हमारे समक्ष आते हैं| अंत में मैं इच्छा करती हूं कि इस तरह के नाटक भविष्य में भी लिखित जाए जो पाठकों का ना केवल मनोरंजन करें अभी तू उन्हें जीवन में कुछ करने एक मार्गदर्शन देने एवं उनका मनोबल बढ़ाने मैं सहायक सिद्ध हो|


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