Monday, 28 January 2019

देश के विकास में युवा पीढ़ी और समाज का योगदान

आज  का समाज जैसे जैसे विकास कर रहा है वैसे वैसे इस समाज में कुछ ऐसे गतिविधयां भी हो रही है जो समाज को विकास के रहा पर चले से रोक रहे है. इस समाज को विकास के रहा पर चलाए जाने के लिए बस प्रसासन ही जेमेदार नहीं है बल्कि जनता का योगदान  भी महत्तपूर्ण है. समाज में चल रही  के प्रकार के गतिविधयां है जो हम सब देख  कर भी ही देख पाते।  हम सदैव समाज को दोष देते है लेकिन यह कभी नहीं समझते के यह समाज हम से ही है और हमें  इसे खूबसूरत  बनाना है

समाज  के प्रति हमारी कुछ  जेमेदारे है हमे उसे समझना चाहए और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए देश को प्रगति की रहा पर चलने में अपना योगदान  देना चाहए हम  सदैव मौलिक आधिकारो को याद रखते है लेकिन अपने मूल कर्तव्य भूल जाते  है  . 

देश के विकास में सबसे बड़ा जोगदान युवा पीढ़ी का है युवा अपने ,श्रम से देश को आसमान के ऊचाई  तक लेकर जा सकते है। मेरा भारत महान इस स्लोगन को और भी सार्थक करने के प्रयास युवा पीढ़ी सतत करती रहती है युवाओ के हाथ में ही देश के बदलाव का जिम्मा होता है यदि वह चाहे तो देश को बदल सकते है हर एक्टिविटी में वह अपना योगदान देते है और देश को उन्नति की ओर अग्रसर करते है. भारत देश में युवा राष्ट की शक्ति है युवाओ को अपने देश में ही रहकर राष्ट निर्माण में अपना योगदान देना चहिये ओर देश को विश्व शक्ति बनाना होगा  . 

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Tuesday, 15 January 2019

महादेवी वर्मा के ये शब्द याद हैं

चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत्-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले?
पन्थ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले?
विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर-गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
वज्र का उर एक छोटे अश्रुकण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक् पतंग की है अमर की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!